Saturday, June 25, 2022

डॉक्टर्स MEETUP

 जिंदगी गाहे-बगाहे बेहिसाब सबक देती है मगर हम लोग सबक लेते ही नहीं है , पिछले कुछ दिन व्यस्तता के कारण ये पोस्ट लेट होगई इसको थोड़ा पहले लिखा जाना था मगर देर आये दुरुस्त आये। हम पिछले दिनों हिमाचल में थे भीड़ भाड़ वाली दुनिया से अलग मैं और दीपक , पढ़ने और जीने में लगे हुए थे, मेरी गलती कहो या कुछ भी टिकट इतनी आगे की बुक की फ्लाइट की तो अंत में डलहौजी में ही 3 से 4 दिन बिता दिए। डलहौजी ऐसा होगया था कि मैं होटल से निकलती इधर उधर घूम कर होटल आजाती इसी में एक शाम फिर निकले हम और इस बार शॉल लेने और कॉफी पीने निकले,एक शॉल ले लिया फिर थोड़ा आगे बढ़े तो दुकानदार ने रोक लिया " की जितने का खरीद कर लाये हो उससे सस्ते में ले जाओ शॉल" ये सुनकर मैं चल पड़ी थी ,मगर दीपक ठहर कर देखने लगे गए फिर थोड़ी देर देखने पर दुकान में एक सरदारों का ग्रुप आया सब के सब तकरीबन 55 60 और 65 की उम्र के थे उनमें एक अंकल जी बड़े मजाकिया थे जो दुकानदार की हर बात का जवाब पंजाबी में और बड़े ही मजाकिया लहज़े में दे रहे थे दुकानदार कहे की "सर पूछो ही मत " अंकल फटाक से जवाब दें कि "ले फिर नी पूछ दे " 🤣🤣 यहाँ शुरू हुआ ये सब अंकल को आंटी के लिए शॉल लेना था मुझसे थोड़ी सलाह माँगी और ऐसे करते करते उन्होंने अपनी पुत्र वधु के लिए भी लिया,बातों बातों में पता चला वो अंकल अमेरिका से आये हैं , फिर एक और बात पता लगी की अंकल अपने 40 साल पहले के कॉलेज फ़्रेंड्स के साथ गेट टूगेदर करने आये हैं ,कोई अमेरिका से,कोई कनाडा से कोई पंजाब के शाहबाद से और कोई शिमला से। मैं थोड़े शाक में थी की अभी मुझे 2 3 साल हुए हैं कॉलेज से निकले अब कोई get-together प्लान करो तो सिरे नहीं चढ़ती और ये लोग 40 42 साल बाद ऐसे इकठ्ठे हो रहे हैं। फिर बातों का दौर कॉफी से शुरू हुआ और अंकल जी ने हमे बताया कि वो उस होटल में रुके हैं और होटल से कहकर आज रात dj night प्लान की है ,हमें भी साथ ले गए पहले पहल मुझे लग रहा था कहीं हम उन लोगों के प्लान को खराब ना कर दे मगर जैसे जैसे हम सबसे मिले हमें महसूस हुआ था कि वो हमारे ट्रिप की बेहतरीन शाम थी।

पंजाब के होम्योपैथी कॉलेज से साथ आज 40 साल बाद वो 10 लोग कॉलेज की याद ताजा करने बैठे थे, और मैं goosebumps फील कर रही थी सुनकर की "यार 40 साल बाद कौन कहाँ कहाँ से उठकर बस कॉलेज की यादें जीने आये हैं,मैं कहाँ होऊँगी कल को,और 40 साल का तो कोई हिसाब ही नहीं है , डॉक्टर खेड़ा,डॉक्टर चिम्मा,डॉक्टर कालेर,डॉक्टर सुफल,डॉक्टर ढिल्लों,डॉक्टर बरार,डॉक्टर संधा, डॉक्टर ग्रेवाल इतने सारे डॉक्टर जो बाद में अंकल ही बने रहे। एक दौर शुरू हुआ बातों का नाचने का इतनी वीडियो बनाई और उस पलों को जितना हो सकता था जीने की भरपूर कोशिश की थी। कहते हैं डॉक्टर और पुलिस से ना यारी अच्छी ना दुश्मनी मगर उस शाम ने सब दूर रख दिया। मैंने और दीपक ने सबसे सबकी कॉलेज की बात सुनी और फिर सवाल पर सवाल की अंकल "कॉलेज में कौन सबसे शरारती था?" "कभी एक वक्त पर किसी दो दोस्तों को एक ही लड़की पर क्रश आया? " " किसी को प्यार हुआ ,किसी ने शादी भी की?" कॉलेज स्ट्राइक के जिक्र हुए कौन कौन किसके किसके बीच मे मिडल मैन बना लव अफेयर सुलझाने में।  get-together  डॉक्टर्स का था मगर हमें लग रहा था जैसे हमने उनका कॉलेज उस पल में वहाँ बैठ कर जिया है। खाना और मेजबानी तो खैर पंजाबियों की शान है तो डिनर अच्छे खासे भंगड़े के बाद , और "यार अनमुळे पर नाच कर हम निकले उस पर भी खेड़ा अंकल जिद कर रहे हैं क़ी हम आपको होटल छोड़ कर आयेंगे क्योंकि 12 बजने वाले थे ,अगले दिन सुबह कॉफी के वादे पर हम निकले और अगले दिन होटल डलहौजी के डलहौजी कैफ़े में कॉफी पर आखिरी विदा के लिए मुलाकात हुई। फिर सेल्फ़ी का दौर चला और आते आते डॉक्टर सुफल ने हमे लिफ्ट दी और पूरा रास्ता दुनिया भर के सवाल हमने उनसे पूछ डाले। और विदा इस वादे पर हुए की अगली मुलाकात हमारे शहर यानी पिंक सिटी में रखी जायेगी।


कितना कुछ होता है जो वक्त की रफ़्तार में छूटने की कोशिश करता है ,कितना कुछ है जो हम वक्त की रफ़्तार में समेट लेना चाहते हैं। और फिर भी कितना कुछ जिये बिना ही रह जाता है उसे जीने का फिर से मौका मिलना ही नेमत है और खुदा ने नेमतें हर किसी को नहीं अता फरमाता,मोहब्बत के घड़े बड़े रखो अक्सर देने वाला घड़े का आकार देखकर भी अता फरमाता है।







Wednesday, April 15, 2020

अपने अपने हिस्से

कई दफ़े ज़हन में ख्याल उमड़ते हैं और मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है की अगर कुछ अटक जाता है तो इतनी आसानी से दिमाग की जड़ों से निकल कर नहीं जाता.ज़ेहनी तौर जज़्बाती रही हूँ हमेसा। आजकल एक ख्याल है जो रह रह कर दिमाग मे घूमता है की मैं किसकी पिक्चर का हिस्सा हूँ? मैं किसी भी तस्वीर का हिस्सा ही नहीं हूँ सब तस्वीरें पहले से मुकम्मल है।

अजीब सी स्थितियां रहती है इंसान की जिंदगी की हम साथ जीने की खातिर सब हार जाते हैं अपना आत्म सम्मान सबसे पहले हार जाते हैं। लोग,रिश्ते,अपने जरूरी हैं मगर खुद की मौजूदगी को महसूस करने के लिए आत्म सम्मान जरूरी है। कितनी ही तस्वीरें हैं आस पास मगर मैं हिस्सा किसी का नहीं हूँ सबसे मुश्किल और दुख दायक ये रहा की मुझे इतने वक्त से लगता रहा था की मैं तस्वीरों के हिस्से में हूँ।पहले पहले पहली तस्वीर में खुद को देखती रही थी मैं मगर उस तस्वीर में मेरे आत्म सम्मान ,मेरे होने नहीं होने की अहमियत,मेरी मोहब्बत के लिए जगह ही नहीं है फिर ऐसी तस्वीर में खुद को फिक्स क्यों करना,दूसरी तस्वीर में मुझ पर बेइंतहा हक जमाने वाले अपने मगर खुद की जिंदगी में इस कदर व्यस्त हैं की ख्याल है ही नहीं उनको की  मैं हूँ कहाँ अपने वजूद के होने का हर वक्त तो ख्याल दिला नहीं सकती ,तीसरी तस्वीर के लिए मैं महज एक फ़र्ज़ हूँ जो बस पूरा करना है उससे ज्यादा कुछ नहीं.......तीन तस्वीरों पर ही तस्व्वुर सम्भाल रखा था अब तीनों में खुद को कहीं नहीं पाया....खुद के वजूद की तलाश ही इतनी मुश्किल मिली सफ़र ना जाने कैसा होगा,खैर सफ़र सबके अकेले ही होते हैं ।

ख्याल और दुनिया के उस पार मिलेंगे यार
जहां बस इश्क़ ही इश्क़ महकता हो यारा

Saturday, March 14, 2020

अपने हिस्से की मोहब्बत

मुझे चीजों से लगाव बहुत ज्यादा रहता था वो टुकड़े में बंटे खिलौने भी नहीं फेंके कभी,वो छोटा सा पत्थर का भालू कितने दिन भी जोड़ कर ,सम्भाल कर रखा था।मेरी माँ मेरी किसी भी चीज़ को फेंकती नहीं है कभी क्योंकि उनको पता है जब मुझे नहीं मिलेगी तो मैं बेजार होकर रोऊँगी।एक वक्त ऐसा आया की अलमारी भर गई उन सारी टूटी हुई चीज़ों से और अंत में मैंने ज्यादा टूटी चीज़ें फेंक दी और कम टूटी रख ली। अबकी बार उस स्कूल वाली दोस्त का दिया ब्रेसलेट भी रह गया था कम टूटी चीजों में,फिर से मैंने उनको सहेज लिया। फिर एक दिन अचानक मुझे इश्क़ होगया मुतमईन सा,सहज,ठहराव चाइए थे और डूब कर जीने की आदत को और पक्का करना था तो कर दिया सरेंडर खुद को। उसमें भी छोटी बड़ी चीज़ें सहेजी सारी फोटो,उसकी दी पहली चॉकलेट का रैपर तक सम्भाल कर रखा ,उसकी दी हुई घड़ी मेरा वक्त तय कर रही थी। उसकी ITR की डेट,उसकी बहन के बच्चों का जन्मदिन,उससे जुड़े हर रिश्ते को दिल खोल के अपनाया वो सब उसके लिए नहीं अपनी खुशी के लिए किया था। उसकी तरफ से जिसे जो भेजना था वक्त पर भेजती थी बदले में उसको तारीफें मिलती थी की तुम इतने जिम्मेदार नहीं थे कैसे हुए....बस इसी में खुशी मिलती थी और एक दिन यूँ हुआ की मैं यादें जमा करती रही और मेरे हाथ किसी ने मेरा दिल तोड़ कर रख दिया ये कह कर की "ऑप्स  टूट गया" जोड़ लेना मैंने दिल को दरकिनार करके भी कहा की मुझे दिल नहीं चाइए मेरी मोहब्बत ही वापस कर दो....मगर अंत में मैंने अपनी आलमारी में वो टूटा हुआ दिल भी समेट लिया,आँखे सुख कर रेगिस्तान हो गई थी,दिल शमशान होगया था। फिर अचानक से उठ कर मैंने अपनी अलमारी से सब कुछ बाहर निकाला और फेंक दिया टूट हुआ दिल भी और जमा की हुई यादें भी और दिल को कड़ा करके समझा दिया खुद को की शमशान ही रहते है वहाँ इंसान की उम्मीद भी करना पागलपन है। फिर चीज़े मुझे टूट जाती,खो जाती तो दिल नहीं दुखता था पहला फोन,दूसरा फोन,तीसरा फोन,सारे फ़ोटो,यादें,दिल और अंत में मैंने महसूस किया की मै खुद को भी खो चुकी हूँ। अब कुछ टूटता है तो या खो जाता है तो तकलीफ कम होती है। 
पाषाण और शमशान होकर वक्त की हमराह बनकर चल रही ही थी की यूँ हुआ की किसी ने मुझे झिंझोड़ कर दस्तक दी और पूछा की इश्क़ इतना बुरा होता है की टूटे हुए लोगों के हिस्से में ही ना जाये? मैंने उसके टूटे दिल को रख लिया सम्भाल कर,फिर अहसास होने लगा खुद के इंसान होने का,उससे जुड़े हर रिश्ते को दिल लगाकर निभाने का वादा किया है खुद से ,जिंदगी को जी खोल कर जीने की हसरत फिर से दिखने लगे गई है....मगर किसी ने अचानक से आकर मुझे नींद से जगाया की उजड़े हुए,और टूटे हुए लोगों के नसीब में मोम और जिंदगी नहीं लिखी होती ठीक वैसे ही जैसे वेश्या की किस्मत में शौहर नहीं लिखे होते......फिर टूटे हुए दिल को उठा कर रख दिया अलमारी में......अपने अंधेरों में खुश रहो,कम से कम जिंदा तो रहेंगे........

Wednesday, February 26, 2020

सदियों का सफर

हम इन्सान जिन्दगी जीते जीते अपने लिए बहुत सारी थ्योरी बना लेते हैं और उनको ही जीते हैं| ये थ्योरी हमारे लिए कई बार अजाब बन जाती हैं | उस अजाब बाद हम टूट जाते हैं तो  हम टूटे हुए लोग ना वफाएं तलाश करते हैं | जब हम वक्ती तौर पर बड़े हो जाते हैं ना तो हम कभी सच नहीं कह पाते फिर सच को कपड़े में लपेट लपेट कर जूठ के साथ बोलते हैं | जिन्दगी का सबसे मुश्किल पल वो होता है जिसमें आप जान चुके होते हो की आप डूबने वाले को और उम्मीद के तौर जिसकी तरफ देखते हैं उसी पल वो आपका हाथ झटक दे तो आधी रूह आप छोड़ चुके होते हैं |  मुझे आजकल फिर वही ख्याल आरहे है जेहन में जिसमें मैंने खुद की नब्ज को चेक किया था और फिर तमाम रात मैंने खुद  को ये यकीं दिलाया की मैं मर चुकी हूँ |  इन्सान की उम्मीद का सूरज इतनी आसनी से नहीं डूबता इन्सान एक दिन में नहीं मरता सदियाँ एक दिन में कहाँ स्थापित होती है |ठीक वैसे ही एक दिन में कुछ नहीं होता ,ना उम्मीद एक दिन में टूटती है और ना एतमाद एक दिन में बनता है फिर क्यों मुद्दत से बनाई हुई चीज़ें हवा के झोंके में हवा हो जाती हैं | 
कोसिस चल रही है की फिर से ख्याल लिखें मगर क्यों ख्याल जेहन में आकर धुल जा रहे हैं ? क्यों कोसिसें करीब होकर दामन छोड़ दे रही हैं ?मगर फिर भी उम्मीद है जिसपे दुनिया कायम रहती है हम फिर ख्याल लिखेंगे ,आँखे फिर से रंग देखेगी ,दिल फिर से गायेगा ,तुम फिर से लौटोगे सावन बन कर ,हमें अपनी नियति की तरफ लौटना ही होता है कभी जोगी होकर .कभी मायल होकर या कभी पागल होकर मगर हम लौटते जरुर हैं अपनी नियति की तरफ